मेरा नादान दिल
यूं तो हाल-ए-दिल बयां कभी नही करता हूँ
भले ही रोज अकेला जीता हूँ-रोज मरता हूँ
चाहे खुद को रोक लूं फिर भी दिल कहाँ रूकता है
वो तो बस एकदम-सा निकल पड़ता है
बहुत कम लोग होते है ऐसे जिनके सामने
दिल खुद-ब-खुद बोल पड़ता है
देखो मेरे दिल की नादानी
क्या पता इसे,क्या,किसकी कहानी
बस अपने ही धुन मे रहता है
जो चाहे बोल पड़ता है और फिर रोता है
और मै एकटक होकर देखता रह जाता हूँ
सिवाय इसके कुछ नही कह पाता हूँ
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे ऐसा ही होता है|
मेरा दिल मेरे अधीन नही
किसी पंछी के भांति पराधीन नही
वो उन्मुक्त गगन मे उड़ता है
शायद इसीलिए मुँह के बल गिरता है
इसे दुनिया का छल,बल,प्रपंच कहाँ मालूम
निहित स्वार्थ मे डूबी दुनिया का रंग कहाँ मालूम
अपनो-परायो मे ये फर्क़ कहाँ कर पाता है
इसीलिए हरवक्त ठोकर खाता है,पर
मैं इसके लिए नही कुछ कर पाता हूँ,बस
यही सोचता हूँ:-
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे ऐसा ही होता है|
मेरा मन चित्कार कर उठता है
रोम-रोम धिक्कार कर उठता है
कितना विवश,कमजोर हो गया हूँ मै
हर पल,हर बार मुझे ललकार उठता है
अपने दिल का ये हाल देख
मैं भी दुःखी हो जाता हूँ
दो लब्ज़ के सिवा और
कुछ नही कह पाता हूँ
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे ऐसा ही होता है|
कुछ ख्वाब हर पल ये संजोता है
हर पल, हर क्षण ये नई आशाएँ करता है
पर ख्वाबों का ढ़ंग उसे पता कहाँ
वो महज़ रेत ,अभी यहाँ तो कभी वहाँ
काँच सी पड़तें हैं इसकी
एक कडा़ लब्ज भी इसे बिखेर देता है
लेकिन मेरे दिल की हिम्मत तो देखो
वो फिर समेट उसे नया रूप दे देता है
जैसे फिर नया जन्म वो पाता है
पर कभी नही कुछ कहता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे ऐसा ही होता है|
मैं वक्त अपना कुछ देता हूँ
बदले मे थोडा़ ही माँगता हूँ
कुछ लोग वो भी नही दे पाते है
मन- ही -मन घबराते हैं
शायद उनके वक्त की कीमत अदा नही कर पाता हूँ
तभी तो हरवक्त अपना-सा मुँह लेकर रह जाता हूँ
लेकिन मेरा दिल ये सब कहाँ समझ पाता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे ऐसा ही होता है|
शायद इसमे उनका कोई कसूर नहीं
हो सकता है,मैं हूँ, पर वो मजबूर नहीं
पर, हर बार ऐसा ही क्यों होता हैं?
क्या ये दुनिया का दस्तूर नहीं?
पर,मेरे दिल को इसकी फिकर कहाँ
उसके सामने मेरी अकड़ कहाँ
वो स्वच्छंद विचरण करता है
जिसे चाहे उसे बंधन मे बाँधता है
कौन समझाए उसे यह कोई गुड्डे-गुडि़यों का खेल नही
या फिर दो दिलों,दो जिस्मों का मेल नही
इतनी सी बात वो कहाँ सोच पाता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे ऐसा ही होता है|
अभी गिरा था,अभी फिर उठ चला वो
फिर नया आशियाना बनाने को
कुछ करने को,कुछ कर दिखाने को
अपनी नई पहचान बनाने को
जाने क्यूँ वो फिर लौट आता है?
भूली - बिसरी यादों में खो जाता है
उसे इस भंवर से निकाल फेंकने को
हर बार कोशिश कर विफल हो जाता हूं
दो लफ्ज़ के सिवाय कुछ कह नहीं पाता हूं
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया में ऐसा ही होता है
अब तो मेरी आदत हो गई है ऐसी ठोकरें खाने को
नित नई जाल में फंसने को, पुनः मात खाने को
फिर उठ चलने का हिम्मत छोड़ चुका हूं
नई बाधाओं से लड़ने को जी तोड़ चुका हूं
पर,
मेरा दिल ये जानता ही नहीं
मेरा कहा मानता ही नहीं, हर पल
तैयार वो नई मुसीबत झेलने को
गिरने को, गिरकर फिर उठ चलने को
पूछता मुझे चिढ़ा कर इससे मेरा क्या जाता है
तो फिर तू
दिल आखिर तू क्यों रोता
दुनिया में ऐसा ही होता है
कई दिवस बीत गए अपने दिल से मिला नहीं
शायद ,उसे, इस बार कोई छला नहीं
लगता है कहीं मंजिल उसे मिल गई है
सारी मुश्किलें हल हो गई है
खुश होकर चला मैं थोड़ा सुस्ताने को
थोड़ा चैन पाने को, थोड़ा आराम फरमाने को
तभी,
लहूलुहान दिल दरवाजे पर दस्तक देता है
फिर वहीं सिसक - सिसक कर दम तोड़ देता है
और मैं
सिवाय इसके कुछ नहीं कह पाता हूँ
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया में ऐसा ही होता है
कल फिर जन्म लिया था मेरा दिल
कहता है, करूंगा वही जो मैं कहूंगा इस बार
शायद वो भी तंग आ चुका था अब तक
बड़ी तसल्ली हुई, चलो बच जाएगा इस बार
रह कुछ दिन साथ मेरे वो उठ गया
निकट संध्या ही अकेला मुझे छोड़ गया
ये कहकर,
हाल तुम्हारा मुझसे भी बुरा है
बिना वजह तु यूं ही पड़ा है
कहता है, वो गिरता है ,टूटता है
मरता है पर हमेशा इक
नई अमर कथा लिख जाता है
सोच कर अवाक रह जाता हूं, गर तुझे
इतना गर्व तुझ पर तो फिर
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया में ऐसा ही होता है
अब आगे क्या लिखूं, यही सिलसिला चलता गया
मेरा दिल जहाँ भी गया, टूटता गया ,डूबता गया
दुनिया के हर जुल्मों - सितम को हंसकर सहता गया
आईना देखा ना कभी उसने ,कितने जख्म
मेरे जिस्म पर लगाता गया
अब मुलाकात कभी - कभी ही होती है उससे
जब भी मिलता हूं उसी हालत में उसे पाता हूं
तब भी वो मुस्कुराता है और मैं सिवाय
इसके कुछ नहीं कह पाता हूंँ
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया में ऐसा ही होता है
बीते दिन की ओर पलके उठाता हूं
अपने दिन की तमाम किस्से दोहराता हूं
फिर सोचता हूं कितना नादान है मेरा दिल
तनिक दोष भी नहीं देता उनको
और कहता है
शुक्रिया अदा करता हूं उनका भी जो
मुझे छोड़ गए, तोड़ गए
अंदर से मुझे झकझोर गए
सच है हर बार मैं ठोकर खाता हूं ,पर
नई उम्मीद उन्हीं से पाता हूं , तभी
तो सर्वस्व समर्पण कर पाता हूं
कह कर साहसा
वो उस नई उम्मीद लेकर फिर
अनजान राह पर निकल पड़ता है
तब मैं फिर ठगा - सा देखता रह जाता हूं
और बस यही कह पाता हूं
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया में ऐसा ही होता है।।
♥️
ReplyDeleteThanks🙃
ReplyDeleteExcellent !!! 💖
ReplyDeleteI wish I could write like you...
Rightly said
DeleteSpeechless!!!!
Thanks😊,May God fulfill ur wish👍
ReplyDeleteIn love with ur writing skills as well as poetry......... DINKAR JI👏👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteThanks, inspired by you.
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