मेरा नादान दिल

यूं तो हाल-ए-दिल बयां कभी नही करता हूँ भले ही रोज अकेला जीता हूँ-रोज मरता हूँ चाहे खुद को रोक लूं फिर भी दिल कहाँ रूकता है वो तो बस एकदम-सा निकल पड़ता है बहुत कम लोग होते है ऐसे जिनके सामने दिल खुद-ब-खुद बोल पड़ता है देखो मेरे दिल की नादानी क्या पता इसे,क्या,किसकी कहानी बस अपने ही धुन मे रहता है जो चाहे बोल पड़ता है और फिर रोता है और मै एकटक होकर देखता रह जाता हूँ सिवाय इसके कुछ नही कह पाता हूँ दिल आखिर तू क्यों रोता है दुनिया मे ऐसा ही होता है| मेरा दिल मेरे अधीन नही किसी पंछी के भांति पराधीन नही वो उन्मुक्त गगन मे उड़ता है शायद इसीलिए मुँह के बल गिरता है इसे दुनिया का छल,बल,प्रपंच कहाँ मालूम निहित स्वार्थ मे डूबी दुनिया का रंग कहाँ मालूम अपनो-परायो मे ये फर्क़ कहाँ कर पाता है इसीलिए हरवक्त ठोकर खाता है,पर मैं इसके लिए नही कुछ कर पाता हूँ,बस यही सोचता हूँ:- ...